बिहार की राजनीति में शनिवार को एक बड़ा संकेत देखने को मिला, जब पटना में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की जयंती पर आयोजित समारोह में सियासी समीकरण पूरी तरह बदलते नजर आए। इस समारोह का आयोजन राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के संरक्षक पशुपति कुमार पारस ने किया, जिसमें पहली बार महागठबंधन के प्रमुख नेताओं की मौजूदगी ने सभी को चौंका दिया।
समारोह में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल ने रामविलास पासवान की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। इस दौरान तेजस्वी यादव ने सार्वजनिक तौर पर पशुपति पारस के प्रति सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा कि पारस का मुख्य उद्देश्य भी एनडीए को हराना है, जो महागठबंधन के एजेंडे से मेल खाता है।
तेजस्वी यादव के इस बयान ने बिहार की राजनीतिक गलियों में हलचल मचा दी है। लंबे समय से एनडीए के साथ रहे पशुपति पारस की यह नई राजनीतिक दिशा संकेत देती है कि वे अब महागठबंधन के करीब आ चुके हैं। समारोह में तेजस्वी और पारस की खुली बातचीत और सौहार्दपूर्ण माहौल ने साफ कर दिया कि दोनों गुटों में अंदरखाने गहरी बातचीत हो रही है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन पशुपति पारस की पार्टी को कितनी सीटें देगा। जानकारों का कहना है कि यह नई दोस्ती बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव ला सकती है।
पारस की एनडीए से नाराजगी काफी समय से चर्चा में थी, और अब इस समारोह के बाद यह लगभग साफ हो चुका है कि उनका झुकाव महागठबंधन की ओर है। वहीं, महागठबंधन को भी यह समझ आ गया है कि दलित मतों में प्रभाव रखने वाले पारस उनके लिए उपयोगी हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रामविलास पासवान की जयंती पर हुआ यह सियासी मेल-मिलाप बिहार की राजनीति में बड़े उलटफेर की शुरुआत हो सकती है। अब सभी की नजर इस बात पर टिकी है कि सीट बंटवारे को लेकर महागठबंधन और पारस के बीच किस तरह की सहमति बनती है।
बहरहाल, यह तय है कि आने वाले दिनों में बिहार की सियासत और भी दिलचस्प मोड़ ले सकती है, जहां पुराने दुश्मन अब नए साथी बनते नजर आ सकते हैं।
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