प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब त्रिनिदाद और टोबैगो पहुंचे तो वहां उनका स्वागत केवल एक राजनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भी किया गया।
वहां के लोगों ने उनका स्वागत भोजपुरी चौताल से किया, जो यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति, विशेष रूप से बिहार की विरासत, दुनिया के कोने-कोने में जीवित है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में जिस आत्मीयता और गर्व से बिहार का उल्लेख किया, वह केवल एक राज्य की प्रशंसा नहीं थी, बल्कि यह पूरे भारत के लिए एक गर्व का क्षण था।उन्होंने
यह स्पष्ट किया कि बिहार केवल भारत का हिस्सा नहीं, बल्कि एक वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर है। उन्होंने बताया कि त्रिनिदाद एवं टोबैगो में रहने वाले कई लोगों के पूर्वज बिहार से गए थे, और आज भी वे अपनी भाषा, परंपरा और मूल्यों को सहेजे हुए हैं।
यह सांस्कृतिक जुड़ाव पीढ़ियों के अंतर के बावजूद बना हुआ है, जो दर्शाता है कि जड़ें कितनी मजबूत होती हैं जब संस्कृति और भावना उसमें शामिल हो।प्रधानमंत्री का यह दौरा केवल कूटनीतिक नहीं था, यह एक भावनात्मक पुल था जो भारत और वहां के प्रवासी भारतीयों के बीच बना।
जब उन्होंने मंच से कहा कि यह गौरव केवल बिहार का नहीं बल्कि पूरी दुनिया का है, तो हर उस व्यक्ति का मन गर्व से भर उठा जो भारत की संस्कृति से जुड़ा है। यह भाषण न केवल बिहार की पहचान को एक नई ऊंचाई पर ले गया, बल्कि यह भी जताया कि प्रधानमंत्री वैश्विक मंच पर भी भारत की विविधता और सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा एक बार फिर यह सिद्ध करता है कि भारत की आत्मा केवल उसकी सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि वह वहां तक फैली है जहां-जहां उसकी संस्कृति की गूंज सुनाई देती है। और इस यात्रा के माध्यम से बिहार की वह गूंज दुनिया को सुनाई दी, जिसने उसे वैश्विक गौरव का हिस्सा बना दिया।
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