Bihar News: 17 साल बाद मिलेगी दारोगा की नौकरी, हाईकोर्ट ने दिया ऐतिहासिक आदेश

कभी-कभी न्याय में देर जरूर होती है, लेकिन जब फैसला आता है तो उम्मीदें फिर से जाग उठती हैं। कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है बिहार से, जहां 2008 में निकले एक एग्जाम रिजल्ट के बाद उम्मीदवार को अब जाकर दारोगा की नौकरी मिलने का रास्ता साफ हुआ है।

Aug 22, 2025 - 09:18
Aug 22, 2025 - 22:12
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Bihar News: 17 साल बाद मिलेगी दारोगा की नौकरी, हाईकोर्ट ने दिया ऐतिहासिक आदेश

कभी-कभी न्याय में देर जरूर होती है, लेकिन जब फैसला आता है तो उम्मीदें फिर से जाग उठती हैं। कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है बिहार से, जहां 2008 में निकले एक एग्जाम रिजल्ट के बाद उम्मीदवार को अब जाकर दारोगा की नौकरी मिलने का रास्ता साफ हुआ है। हाईकोर्ट ने लंबे इंतजार के बाद आदेश दिया है कि संबंधित अभ्यर्थी को सेवा में बहाल किया जाए। यह खबर न सिर्फ उस उम्मीदवार के लिए राहत की बात है बल्कि उन तमाम लोगों के लिए भी उम्मीद जगाती है, जो वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक, 2008 में दारोगा भर्ती परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया था। उम्मीदवार ने परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन प्रशासनिक जटिलताओं और कानूनी पेंचों के कारण उसे नौकरी नहीं मिल पाई। मामला कोर्ट तक पहुंचा और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि इतने सालों बाद भी उम्मीदवार अपने हक से वंचित नहीं रह सकता। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि उसे सेवा में लिया जाए और उसका हक दिलाया जाए।

17 साल का इंतजार किसी भी उम्मीदवार के लिए बेहद लंबा होता है। इस दौरान उसके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए होंगे, लेकिन न्याय में उसका भरोसा आखिरकार कायम रहा। यह फैसला दिखाता है कि देर से ही सही, लेकिन न्याय मिलता जरूर है। हालांकि सवाल यह भी उठता है कि सिस्टम की खामियों और प्रशासनिक लापरवाही की वजह से एक योग्य उम्मीदवार को अपनी जिंदगी का इतना लंबा वक्त क्यों गंवाना पड़ा।

कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला एक नजीर साबित हो सकता है। अगर भविष्य में भी इसी तरह की स्थिति आती है तो उम्मीदवारों को भरोसा रहेगा कि न्यायालय उनके साथ खड़ा है। दूसरी ओर, सरकार और भर्ती एजेंसियों के लिए यह सबक है कि वे समय पर पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करें, ताकि किसी भी उम्मीदवार को इस तरह वर्षों तक भटकना न पड़े।

कुल मिलाकर यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की नौकरी का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की जवाबदेही का प्रतीक है। हाईकोर्ट का आदेश यह याद दिलाता है कि न्याय में चाहे जितनी देर हो जाए, लेकिन इंसाफ की लौ बुझने नहीं दी जा सकती।